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अनुभूति में राजीव कुमार श्रीवास्तव
की रचनाएँ—

अंजुमन में-
यकीन

गीतों में-
मृगतृष्णा
विजय गान

छंदमुक्त में-
प्रतीक्षा
मेरा जीवन
सपने
स्मृतियाँ
 

विजय गान

समर क्षेत्र में एक दिन अपना भी परचम लहराएगा।
पराजयों का ये क्रंदन, विजय गान बन जाएगा।

अंतर्मन की करूण वेदना,
पथराई आँखों का सपना।
अंधकार का चीर के सीना,
पंथ प्रशस्त कराएगा।
पराजयों का ये क्रंदन, विजय गान बन जाएगा।

चलना केवल बिन विश्राम,
कर्म सफल होगा निष्काम।
बाधाओं का विघ्न तमाम,
मार्ग नया दर्शाएगा ।
पराजयों का ये क्रंदन विजय गान बन जाएगा।

होगा एक दिन दूर अँधेरा,
फिर आएगा नया सवेरा।
अंधकार का सारा डेरा,
दिपक बन जल जाएगा।
पराजयों का ये क्रंदन विजय गान बन जाएगा।

अनसुलझी सी एक पहेली,
आकांक्षाएँ अभी अकेली।
धीरज का ये संबल ही,
मंजिल तक पहुँचाएगा।
पराजयों का ये क्रंदन, विजय गान बन जाएगा।

२४ अप्रैल २००३

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