अनुभूति में
मधुर त्यागी की
रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अरावली की चिड़िया
ख्वाब भरा आईना है
झंडा हूँ मैं
भगत की जरूरत
सवाल
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सवाल
किन्ही अनचाहे रास्तों से,
गुजरता मैं नंगे पाओं,
महसूस करता हूँ,
सूरज की एक एक तपती किरन,
रस्ते का इक इक कंकड़,
जो कभी चुभता तो,
कभी आराम देता है,
कभी धुल का गुबार,
मेरी साँसों को परखने के लिए,
उमड़ उमड़ कर मेरी और आता है,
और महसूस देती है,
सूखते गले को,
पानी की इक बूँद की चाह,
भूक से उठती,
पेट की मरोड़,
सीने में धड़कती,
इक इक धड़कन का हिसाब,
उसपर इक आताह अकेलापन,
और कभी न ख़त्म होने वाला मंजर,
और तब मैं खुद से पूछता हूँ,
क्या अब भी कोई उम्मीद बाकी है?
१८ नवंबर २०१३
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