अनुभूति में
मधुर त्यागी की
रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अरावली की चिड़िया
ख्वाब भरा आईना है
झंडा हूँ मैं
भगत की जरूरत
सवाल
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झंडा हूँ मैं
अब अकेला खड़ा हूँ मैं,
इस गंदे खली मैदान मैं,
चुपचाप गडा हूँ मैं,
झंडा हूँ मैं,
अब अकेला खड़ा हूँ मैं।
आये थे सुबह सब,
मुझे डंडे से बांध कर चले गए,
कुछ देर सम्मान दिया,
अकेला खड़ा हूँ मैं अब।
कल तो मुझे धोया भी गया था,
पूरे साल से अँधेरे कमरे में जो पड़ा था।
जब रंग बिरंगे कपड़ो में सजे बच्चों को,
मुझे ताकते हुए देखता हूँ,
तो दिल ख़ुशी से लहरा उठता है.
पर जब यह सफ़ेद पोशाक वाले
मुझे घूरते हैं,
तब इनसे मैं मुँह फेर लेता हूँ।
अरे इन्हें तो राष्ट्रगान भी ठीक तरह से नहीं आता,
और कोई कोई तो नाहा के भी नहीं आता,
इनके जिस्म से भ्रष्टाचार की बू आती है,
आँखों में इनकी,
काले धन की अंधी चमक नजर आती है।
इनका इरादा तो मेरे रंग बदलने का लगता है,
शायद इनकी आँखों में,
अशोक चक्र भी खटकता है,
सब रंगों को पोतकर,
मुझे काला करना चाहते हैं,
शायद अशोक चक्र की जगह
अपना चित्र चिपकाना चाहते हैं।
इनसे मुँह फेरकर मैं,
फिर बच्चों की और कर लेता हूँ,
फिर पूरी बाहें लहराकर,
मैं बच्चो से कहता हूँ,
की बच्चों, जब कल नेता बनकर,
झंडा फेह्राने आना तुम,
कसम तुम्हे है इस झंडे की,
यही मासूमियत संग लाना तुम।
तब मैं भी सीना चौड़ा कर,
खुले आसमान में झूमूँगा,
और फिर पूरे साल तक,
चैन से सो पाउँगा।
बस उसी दिन की आस में,
चुपचाप खड़ा हूँ मैं,
इस गंदे खली मैदान में,
चुपचाप गडा हूँ मैं।
१८ नवंबर २०१३
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