अनुभूति में
मधुर त्यागी की
रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अरावली की चिड़िया
ख्वाब भरा आईना है
झंडा हूँ मैं
भगत की जरूरत
सवाल
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अरावली की चिड़िया
बहुत ही नन्ही सी थी वो
पर हौसला उसमें दुनिया भर का
नन्हे नन्हे पंख फहराते
तेज हवा में गोते लगाते
देखा मैंने उसको
अरावली की गोदी में
कभी पंख हिलाती
कभी बहने देती खुद को
खुले आसमान में
हवा से लोहा लेती हुई
देखा मैंने उसको
अरावली की गोदी में
बहुत ही नन्ही सी थी
पर हौसला उसमें दुनिया भर का
उसने भी सोचा होता जो
क्या उड़ पाऊँगी इतना ऊपर
मस्तक ताने खड़ा पहाड़
उससे भी ऊपर ऊपर
मन में एक लगन थी बस
उड़ना है दूर गगन में
ठंडी ठंडी हवा की लहरें
बहती मदमस्त गगन में
ऊँचा ऊँचा उड़ते उड़ते
वो कुछ पल को गायब हो गयी
“डर नहीं सिर्फ वहम है"
शायद जाकर सहेलियों से बोली
और फिर कुछ ही पल में
वहाँ आई चिडियों की टोली
मदमस्त हवा के आँचल में
फिर मस्त हुई उनकी टोली
फिर उस चिड़िया को मैंने
देखा और भी ऊँचा उड़ते हुए
नयी ऊँचाई छूते हुए
नए हौसले से भरे हुए
अब शाम ढली सूरज डूबा
कल नया सवेरा आएगा
कल इस चिड़िया का हौसला
कुछ और बुलंद हो जायेगा।
बहुत ही नन्ही सी थी वो
पर हौसला उसमें दुनिया भर का
नन्हे नन्हे पंख फहराये
हवा में गोते लगाते
देखा मैंने उसको
अरावली की गोदी में।
१८ नवंबर २०१३
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