दो लघु कविताएँ -
हिंदुस्तानी नेता
पहले धर्म
अब वर्ण
और कल जातिगत बँटवारा करेगा
फिर
उपजाति, गौत्रों की
धज्जियाँ उड़ाकर
एक हाथ से दूजे को कटवाएगा
लगता है
एक दिन
वोट के चक्कर में
हिंदुस्तानी नेता
हर एक वोटर को
सौ टुकड़ों में बँटवाएगा
और
एक की जगह
सौ वोट डलवाएगा. . .
ज़मीं का टुकड़ा
कट गए कितने हज़ार
धमाकों से उजड़ा
घर संसार
बरसों से चला आ रहा है
खेल खूनी
जाने कितनी हो चुकी हैं
विधवाएँ और
गोदें सूनी
मगर
जस का तस पड़ा है
वहीं का वहीं
वो ज़मीं का टुकड़ा
9 मार्च 2007
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