अस्तित्व छुआछूत दो लघु कविताएँ मैं इंतजार करूँगा
छुआछूत
बहा दी थी जिसने सारी गंदगी गंदे नाले में, जहाँ से बहकर पहुँच गई वो गंगा में. . .
आज उसी के छू जाने से हो गया मैं अपवित्र तो किया गया मुझे पुनः पवित्र चंद छींटे मेरे बदन पर डालकर उसी गंगाजल के. . .
9 मार्च 2007
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