अनुभूति में अरविंद चौहान की
रचनाएँ
:नई रचना छंदमुक्त में-
वो आँगन का गुलमोहर
कविताओं में
ओ मेरी प्यारी वादी
याद आते हैं वे खेत और खलिहान
यों मिली खुशी
शाहजहाँ को फिर न लेना पड़े जन्म
हाइकु में-
गुलमोहर हाइकु
सर्दी हाइकु
संकलन में-
अमलतास- हँसे अमलतास
(हाइकु)
अमलतास ने ली अँगड़ाई
है (गीत)
शुभ दीपावली-
फिर दीवाली आई है
होली है-
वसंत और होली
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वो आँगन का गुलमोहर
याद है मुझे भरी धूप में सुरज की प्रचंड किरणें
जब बाधित कर देती थीं सबको घरों के अंदर
मैं सब बच्चों के साथ बड़ों की आँख बचा
दिन भर खेला करती थी चौबारे पर
गर्म हवा के थपेड़े और धूल के गुबार
न डिगा पाते थे हमारे चंचल मन।
और याद है मुझे वो आँगन का गुलमोहर
अपनी शीतल बाँहें फैलाए अनुराग बरसाते हुए
सघन टहनियों में हमारे ऊपर की गर्मी समेटते हुए
हम बच्चों की अठखेलिओं पर मन्द मन्द मुस्काता था
और किसी बड़े बूढ़े कि मानिन्द अपनी छाँव फैलाता था
और हम दौड़ कर उससे गले लग जाते थे।
लाल लाल फूलों से लदा मुझे याद है वो आँगन का गुलमोहर
गर्म हवाओं को सहता फिर भी लहरा कर झूमता
और हम अल्हड़ उसकी ठंडक में गर्मी से बेखबर
किलकारियाँ भर खेलते कूदते थे निडर
और वह खड़ा हर्ष से हमें मानो निहारते हुए
पुलकित हो फूलों की वर्षा करता था निर्झर।
मगर न आज वो आँगन है ना ही वो आँगन का गुलमोहर
बस रह गईं हैं स्मृतियाँ उस ठंडी छाँव की
और चौबारे पर बिखरे लाल फूलों की
या फिर जैसे घर के किसी बुजुर्ग की
और सजल आँखें और रुँधा गला लिए
आज भी याद आता है मुझे
वो आँगन का गुलमोहर...
११ मई २००९ |