|
बसंत पर हाइकु
फाग बसंत
मदमाया पवन
मन मलंग
सरसों झूमी
डाल चादर पीली
शर्माए धरा
अमिया डोली
समीर की ठिठोली
गाए कोयल
सुर्ख
रंगों में
नचते बयारों में
टेसू के फूल
गूँजती
हँसी
गोरिया भी बासंती
झूमे हो मस्त
रंगीला मन
उड़ा गया पवन
जैसे पतंग
बासंती
गोरी
बुने सपने अब
आओगे कब
सरसों बीच
पगडंडे ले जाए
स्वर्ग दिखाए
पीत अनंत
महुए की सुगंध
बजते चंग
तितली
प्यारी
इठलाती झूमती
पी मकरंद
अरविंद
चौहान
१७ मार्च २००८
|
होली हाइकु
रंगों का खेल
दिलों का भी हो मेल
प्यार अपार
होली है आई
गुलाल अबीर में
डूबे हैं सब
छलके भंग
मस्ती में हुडदंग
बाजे मृदंग
भीगी
गोरिया
लिपटी चुनरी में
सिमटी जाए
रंग गुबारे
सब पर हैं मारे
फिर भी प्यारे
अल्हड़ मन
नाचे पागल बन
होली है आई
बरसे रंग
हुई छटा रंगीन
छाई खुशियाँ
सजी थाल
में
गुजिया बर्फ़ी जब
मीठी है होली
होली के
रंग
ठंडई पकौड़े में
छुपी है भंग
खिलते रंग
फुहार रंगमयी
इंद्रधनुष
सौहार्द
प्रेम
फैले सब में जब
तभी है होली
जलती होली
करे दहन अब
विषाद सब |