अनुभूति में अर्चना
श्रीवास्तव की
रचनाएँ-
स्वीकारोक्ति
प्रकृति के संग- (एक)
प्रकृति के संग- (दो)
हकीकत
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प्रकृति के संग- (दो)
एक एहसान, आकर्षण या
सबंधों के अपरिभाषित सच
कि हम नहीं भूले
जंगलों, पहाड़ों
झरनों और नालों को
उनमें विचरते
उन्मुक्त, देखे-अनदेखे
असंख्य रंग-बिरंगे
सौम्य बदशक्ल
प्राणों को
हाँ!
अंतर बस इतना
हम थे प्रकृति की
आदिम संतानों में
उसका ही एक अंग
झुरमुठों, नदियों, गुफ़ाओं में समाए
उनमें साँस लेते-देते
न उनसे जुदा, न उनसे आगे
और अब
हम समेट लेना चाहते हैं
उन जंगलों, पर्वतों और झरनों को
और उनसे चिपके जानों को
अपने कंक्रीटों के तिलिस्म में
अनूठे कौशल से जकड़कर
हुनर और ताक़त के ज़ोर पर
शहर की भागदौड़, शोरगुल
और धुँध भरी उदासी में
एक हरियाली
मिट्ठी-सी उमंग लाने को।
११ मई २००९ |