अनुभूति में अर्चना
श्रीवास्तव की
रचनाएँ-
स्वीकारोक्ति
प्रकृति के संग- (एक)
प्रकृति के संग- (दो)
हकीकत
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हक़ीक़त
एक दम भर पूरी साँस को
सीने में समाने नहीं देते
अरमानों के चुभते काँटें
बुझते ख़्वाबों के दीये
पलकों में भरने नहीं देते
नए सपनों के सूरज
सुनने नहीं देते
अंतर के स्वर को
नगाड़ों सी बजती खबरों की हवा
धड़ाधड़ गिरते विश्वास
बँधने नहीं देते
उम्मीद की किसी डोर को
मौकों-सा बदलते मौसमी-रुख
पनपने नहीं देते
किसी पुरज़ोर ख़याल को
११ मई २००९ |