अनुभूति में
अभिजित पायें की
रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
आत्मा की पुकार
आतंक
जिंदगी
जीने के बहाने
सरपट दौड़ता वक्त |
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आत्मा की पुकार
मेरी आत्मा पुकार रही है
क्यों, क्या हो रहा है
ये सब कुछ
आंतक का हमला
आत्मघाती विस्फोरण।
अटक रहा है
मेरे दिल-दिमाग़ में
क्या हो रहा है
ये सब कुछ
इंसान की खातिर
जो होना था
क्या हो रहा है
ये सब कुछ
क्या कहूँ या ना कहूँ
खुद को भूलने लगा हूँ
जीना हराम हो रहा है
कैसे बताऊँ दोस्तों
कैसे बताऊँ
२४ नवंबर २००८ |