अनुभूति में
अभिजित पायें की
रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
आत्मा की पुकार
आतंक
जिंदगी
जीने के बहाने
सरपट दौड़ता वक्त
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आतंक
पूछिए मत
क्या है हाल ?
कुशल वार्ता के विपरीत
क्या कहूँ बे-हाल
आज मैं
आतंक से हूँ परेशान।
उत्तर या दक्षिण
पूर्व या पश्चिम
कहीं से भी देख
इन्हीं का ही संजाल।
क्या करुँ या न करुँ
कहाँ रहूँ या कहाँ जाऊँ
इधर या उधर
आतंक से हूँ
मैं परेशान।
हाँ ! और एक आतंक....
पूरी तरह
फँस गया हूँ
बीचोबीच।
पूछिए मत
क्या है हाल.......
क्या कहूँ बे-हाल। २४
नवंबर २००८ |