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रूह
चाहती गात
जीवन मरण बिसात पर बोल रहे शह मात
साँस साँस जकडे रहे
हतप्रभ, रुके बलात
स्वप्न शेष आँखों में सोई लगती प्रात
गोधूलि कहे 'रुक लो' शाम थामती हाथ
बुला रही उस ओर को वह रहस्य सी रात
द्विविधा, संशय, भ्रम है
किसकी माने बात
प्रतिपल पीछे अनंत है हर क्षण पीछे कथ्य
जीवन कथा ज्वलन्त है क्या इसके नेपथ्य
घड़ी अचानक चुप हो किस्से खत्म हठात
भोग रहे सपनों को
रूह चाहती गात
१ अप्रैल २०२३ |