अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में विप्लव जी की रचनाएँ-

गीतों में-
गोधूलि निकट
गोधूलि वेला
जीवन की शाम
झरनों जैसे बैन
रूह चाहती गात
 

  झरनों जैसे बैन

देवदार के वन में खोई प्रीत पुकार
प्रेम मंत्र जपती हो तपसिन बनी बयार
उसमें मंदिर पावन
घनी छाँह सा प्यार
  
ऊहापोह संकेतों जटिल सभी के अर्थ
निष्ठुर मुद्रा झूठी उलझ रहा मन व्यर्थ
मनोभाव पथरीले
ज्यों इनमें जलधार
 
परिचय तो झलकाते बतला देते नैन
चीड़ वृक्ष के जंगल झरने जैसे बैन
मौन बर्फ का पिघले
जगे स्वप्न संसार
 
१ अप्रैल २०२३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter