जीवन की शाम
उषा काल सी लगती
जीवन की शाम
रंग रूप पक्षी स्वर
गगनाँगन धाम
प्राची से क्षितिज तलक
विस्तृत आकाश
छोटी तरु फुनगी से
उड़ती अभिलाष
कदम कदम यात्रा नभ
लिखती निज नाम
किसकी है नियति रात्रि
है किसकी घाम
स्वप्न मछलियाँ तैरें
व्याकुल मछुवारा
बंशी ही रही आस
हारा बेचारा
धुन में ही भूल गया
शेष बचे काम
आयु अल्पना जैसी
भ्रामक परिणाम
१ अप्रैल २०२३
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