अनुभूति में
विजय किशोर मानव की रचनाएँ-
नए गीतों में-
खुले आम चुन लिये गए
बाँध गई मुस्कान
यात्राएँ गंगा सागर की
साज़िशों भरे दफ्तर
हँसने के दिन
गीतों में-
गाँव छोड़ा शहर आए
घुटन से भरी भरी
जलती आँखें कसी मुट्ठियाँ
पाला मारे खेत
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हँसने के
दिन
हँसने के
दिन झरने लगे
देह में तपन भरने लगे
बैाराए पाँव, नाव के
गदराए स्वर बहाव के
उड़ते को मन
करने लगे
साँसों में यादें बाँधे,
जाने क्या लादे काँधे
सपनों में रंग
भरने लगे
१७ अक्तूबर २०११
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