अनुभूति में
विजय किशोर मानव की रचनाएँ-
नए गीतों में-
खुले आम चुन लिये गए
बाँध गई मुस्कान
यात्राएँ गंगा सागर की
साज़िशों भरे दफ्तर
हँसने के दिन
गीतों में-
गाँव छोड़ा शहर आए
घुटन से भरी भरी
जलती आँखें कसी मुट्ठियाँ
पाला मारे खेत
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गाँव छोड़ा
शहर आए
गाँव छोड़ा
शहर आए
उम्र काटी सर झुकाए
ढूँढ ली खुशियाँ इनामों में
जुड़ गए कुछ खास
नामों में
माँ नहीं सोई
भिगोकर आँख रातों रात रोई
और हर त्योहार बापू ने किसी की
बाट जोही
मीच आँखे सो नहीं पाए
बाँध कर उम्मीद
पछताए
हाँ हुजूरी में सलामों में
खो गए बेटे निजामों में
ढूँढ ली खुशियाँ इनामों में
जुड़ गए कुछ खास
नामों में
घर नहीं कोई
यहाँ दरबार हैं या हैं दुकानें
जो हँसी लेकर चले उस पर पुती हैं
सौ थकानें
कामयाबी के लिये सपने
बेच डाले रात दिन
अपने
सिर्फ कुछ छोटे छदामों में
खो गए रंगीन शामों में
ढूँढ ली खुशियाँ इनामों में
जुड़ गए कुछ खास
नामों में
१६ अगस्त २०१०
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