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अनुभूति में प्रो. विद्यानंदन राजीव की रचनाएँ-

गीतों में-
ऐसी कथा न रच
खूँख्वार हवाएँ
पंख कतरने में
बनवासी
ये फणी

संकलन में-
अमलतास- कर्णफूल पहने
 

 

ये फणी

ये फणी अब
आदमी के वेश में
संवेदना को डस रहे हैं।

इन दिनों अक्‍सर
धवल पोशाक में हैं
कब उचित अवसर मिले,
इस ताक में हैं

द्रोहियों का ले सहारा
कोटरों में बस रहे हैं।

वे जहाँ भी, जि़न्‍दगी उस
जगह अति असहाय होती
क्रूरता ऐसी, कि जिसमें
भावना मृतप्राय होती,

लोग इन का लक्ष्‍य बन कर
त्रस्‍त और विवश रहे हैं।

बढ़ रहे इंसानियत की ओर
पग को रोकते हैं
अमन के उद्भूत होते
मधु स्‍वरों को टोकते हैं,

निगलते मासूमियत को
ये भयावह अजदहे हैं।

१९ सितंबर २०११

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