अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में प्रो. विद्यानंदन राजीव की रचनाएँ-

गीतों में-
ऐसी कथा न रच
खूँख्वार हवाएँ
पंख कतरने में
बनवासी
ये फणी

संकलन में-
अमलतास- कर्णफूल पहने

 

 

 

खूँख्वार हवाएँ

बस्ती बस्ती
आ पहुँची है
जंगल की खूँख्वार हवाएँ !

उत्पीड़न
अपराध बोध से
कोई दिशा नहीं है खाली
रखवाले
पथ से भटके हैं
जन की कौन करे रखवाली

चल पड़ने की
मजबूरी में
पग पग उगती हैं शंकाएँ !

कोलाहल
गलियों -गलियारे
जगह-जगह जैसे हो मेला
संकट के क्षण
हर कोई पाता
अपने को ज्यों निपट अकेला

अपराधों के
हाथ लगी हैं
रथ के अश्वों की वल्गाएँ !

१ मई २००२


sa`aot : kavyaa ³kavyabaaoQa kI ~OmaaisakI´
28–kailaka inavaasa¸ naoh$ raoD¸ saaMtaËuja, ³pUva-´¸ mauMba[- 400 063

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter