अनुभूति में
प्रो.
विद्यानंदन राजीव
की रचनाएँ-
गीतों में-
ऐसी कथा न रच
खूँख्वार हवाएँ
पंख कतरने में
बनवासी
ये फणी
संकलन में-
अमलतास-
कर्णफूल पहने
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खूँख्वार हवाएँ
बस्ती बस्ती
आ पहुँची है
जंगल की खूँख्वार हवाएँ !
उत्पीड़न
अपराध बोध से
कोई दिशा नहीं है खाली
रखवाले
पथ से भटके हैं
जन की कौन करे रखवाली
चल पड़ने की
मजबूरी में
पग पग उगती हैं शंकाएँ !
कोलाहल
गलियों -गलियारे
जगह-जगह जैसे हो मेला
संकट के क्षण
हर कोई पाता
अपने को ज्यों निपट अकेला
अपराधों के
हाथ लगी हैं
रथ के अश्वों की वल्गाएँ !
१ मई २००२
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