|
ऐसी कथा न रच
अच्छे भले यहाँ हम हैं
कोई विष-बीज न बो
ऐसी कथा न रच
जिसका कोई सिर पैर न हो
शहर नहीं है बंधु
एक यह छोटी सी बस्ती
यहाँ जिन्दगी, भीतर-बाहर
भेद नहीं रखती,
लोग वसूलों का दामन
है, सदियों से थामे
कभी नहीं सोचा
आखिर में होना हो सो हो
यहाँ गरीबी भी बसती
उसका अपमान न कर
भद्रजनों का हाथ सदा
रहता उसके सिर पर
खेती है वरदान
कृषक मजदूर सभी पलते
श्रम का मंत्र याद रहता है
हर रहबासी को
१९ सितंबर
२०११
|