अनुभूति में
उमाकांत मालवीय
की रचनाएँ-
एक चाय की चुस्की
गुज़र गया एक और दिन
झंडे रह जाएँगे, आदमी नहीं
टहनी पर फूल जब खिला
पल्लू की कोर दाब दाँत के तले
फूल
नहीं बदले गुलदस्तों के
यह अँजोरे पाख की एकादशी
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टहनी पर फूल जब खिला
टहनी पर फूल जब खिला
हमसे देखा नहीं गया।
एक फूल निवेदित किया
गुलदस्ते के हिसाब में
पुस्तक में एक रख दिया
एक पत्र के जवाब में।
शोख रंग उठे झिलमिला
हमसे देखा नहीं गया।
प्रतिमा को
औ समाधि को
छिन भर विश्वास के लिए
एक फूल जूड़े को भी
गुनगुनी उसाँस के लिए।
अलि गुंजन गंध सिलसिला
हमसे देखा नहीं गया।
एक फूल विसर्जित हुआ
मिथ्या सौंदर्य-बोध को
अचकन की शान के लिए
युग के कापुरुष क्रोध को
व्यंग टीस उठी तिलमिला।
हमसे देखा नहीं गया।
24 अक्तूबर 2007
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