अनुभूति में
उमाकांत मालवीय
की रचनाएँ-
एक चाय की चुस्की
गुज़र गया एक और दिन
झंडे रह जाएँगे, आदमी नहीं
टहनी पर फूल जब खिला
पल्लू की कोर दाब दाँत के तले
फूल
नहीं बदले गुलदस्तों के
यह अँजोरे पाख की एकादशी
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गुज़र गया एक और दिन
गुज़र गया एक और दिन,
रोज़ की तरह।
चुगली औ’ कोरी तारीफ़,
बस यही किया।
जोड़े हैं काफिये-रदीफ़
कुछ नहीं किया।
तौबा कर आज फिर हुई,
झूठ से सुलह।
याद रहा महज नून-तेल,
और कुछ नहीं
अफ़सर के सामने दलेल,
नित्य क्रम यही
शब्द बचे, अर्थ खो गए,
ज्यों मिलन-विरह।
रह गया न कोई अहसास
क्या बुरा-भला
छाँछ पर न कोई विश्वास
दूध का जला
कोल्हू की परिधि फ़ाइलें
मेज़ की सतह।
'ठकुर' सुहाती जुड़ी जमात,
यहाँ यह मजा।
मुँह देखी, यदि न करो बात
तो मिले सजा।
सिर्फ़ बधिर, अंधे, गूँगों –
के लिए जगह।
डरा नहीं, आए तूफ़ान,
उमस क्या करूँ?
बंधक हैं अहं स्वाभिमान,
घुटूँ औ' मरूँ
चर्चाएँ नित अभाव की –
शाम औ' सुबह।
केवल पुंसत्वहीन, क्रोध,
और बेबसी।
अपनी सीमाओं का बोध
खोखली हँसी
झिड़क दिया बेवा माँ को
उफ़, बिलावजह।
24 अक्तूबर 2007
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