अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में डॉ० त्रिमोहन 'तरल' की रचनाएँ-

गीतों में-
अश्क से भीगी निगाहें
इधर-उधर की
ओ नदी
क्यों अभी तक
मधुर मास के प्रथम पुष्प की

संगदिल शहर में
सब कहते हैं

 

सब कहते हैं

सब कहते हैं सच ही होगा
ईश्वर बड़ा दयालू है
देख देखकर इस दुनिया को
मेरा मन शंकालू है

मुफ़लिस माँ का जाया बचपन
फुटपाथों पर पड़ा पल रहा
जैसे तपती हुई सड़क पर
कोई नंगे पाँव चल रहा
हालत तो रुक जाने की है
जीवन फिर भी चालू है

किसी पेड़ की हर शाखा का
पत्ता-पत्ता हरा-भरा है
कोई ठूँठ हो रहा फिर भी
जीने की ज़िद लिए खड़ा है
उसके हिस्से उर्वर मिटटी
इसकी जड़ में बालू है

पर्वत के पत्थर को भी हम
छप्पन भोग लगाते रहते
पाल-पाल कर कुत्ते बिल्ली
रबड़ी-दूध पिलाते रहते
और कहीं पर भूख मिटाने
को बस उबला आलू है

१० मई २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter