सब कहते हैं
सब कहते हैं सच ही होगा
ईश्वर बड़ा दयालू है
देख देखकर इस दुनिया को
मेरा मन शंकालू है
मुफ़लिस माँ का जाया बचपन
फुटपाथों पर पड़ा पल रहा
जैसे तपती हुई सड़क पर
कोई नंगे पाँव चल रहा
हालत तो रुक जाने की है
जीवन फिर भी चालू है
किसी पेड़ की हर शाखा का
पत्ता-पत्ता हरा-भरा है
कोई ठूँठ हो रहा फिर भी
जीने की ज़िद लिए खड़ा है
उसके हिस्से उर्वर मिटटी
इसकी जड़ में बालू है
पर्वत के पत्थर को भी हम
छप्पन भोग लगाते रहते
पाल-पाल कर कुत्ते बिल्ली
रबड़ी-दूध पिलाते रहते
और कहीं पर भूख मिटाने
को बस उबला आलू है
१० मई २०१० |