मधुर मास के
प्रथम पुष्प की मधुर मास
के प्रथम पुष्प की
भीनी-भीनी मधुर गंध थी
वह मेरी पहली पसंद थी
थी रहस्यमय ऐसी जैसे
उलट्वासियाँ हों कबीर की
सहज-सरल फिर भी ऐसी थी
नज़्म कोई जैसे नज़ीर की
लचकीला था बदन कि जैसे
महाप्राण का रबर छंद थी
वह मेरी पहली पसंद थी
नपा-तुला था बदन कि जैसे
दोहे की सीमित मात्राएँ
आँखें थी जीवंत कि मानो
चित्रकार की चित्र-कथाएँ
प्रथम बार के लिखे गीत का
अपरिपक्व पर नया छंद थी
वह मरी पहली पसंद थी
ताज़ा इतनी जैसे कोई
सुबह ओस से धुली कली हो
द्रुतगत ज्यों समुद्र से मिलने
गंगा गोमुख से निकली हो
इन बाहों के सागर तक
आते पड़ जाती मंद-मंद थी
वह मेरी पहली लगती
सखियों में लगती थी मुझको
तारों में ध्रुवतारा जैसी
सारे आलम को चमकाने
वाली आलमआरा जैसी
रात्रि-गगन के स्वच्छ भाल पर
पूर्ण मास का पूर्ण चंद थी
वह मेरी पहली पसंद थी
हँसती थी तो दंत -पंक्ति
लगती थी ज्यों आकाशी गंगा
लहराते थे वस्त्र कि जैसे
लहराता भारती तिरंगा
पहली बारिश से उठती जो
माटी की सौंधी सुगंध थी
वह मेरी पहली पसंद थी
१० मई २०१० |