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वेला संवत्सरा
हेमंत की पैनी हवा
वेला हुई संवत्सरा
जैसे शकुन तिथि तीज का
यह जन्म
ऋतु - संबीज का
लेकर परीक्षित गोद में
घूमे अधीरा उत्तरा
लो, दृष्टि आँके ताल की
छवियाँ
अपत्रित डाल की
निरखे खुला आकाश भी
यह सृष्टि नील दिगंबरा
मुक्ता बनेगी हर व्यथा
सुनकर
हरी अपनी कथा
है आज तो पतझार से
हर ओर पीत वसुंधरा
२१ मई २०१२ |