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अनुभूति में सोम ठाकुर की रचनाएँ—

गीतों में-
खिड़की पर आँख लगी
मन जंगल के हुए
प्रेमा नदी
सूर्यमुखी फूल
स्वर की तरंगें
वेला संवत्सरा
हवाएँ संदली हैं

संकलन में-
मेरा भारत- तिरंगा
         राष्ट्र देवता
         वंदन मेरे देश
मातृभाखा के प्रति- राजभाषा वंदन

 

मन जंगल के हुए

तन हुए शहर के,
पर मन जंगल के हुए
शीश कटी देह लिए हम इस
कोलाहल में घूमते रहे लिए विष-घट
छलके हुए

छोड़ दी
स्वयं हमने सूरज की अँगुलियाँ
आयातित अंधकार के पीछे दौड़ कर
करके अंतिम प्रणाम धरती की गोद को
हम जिया किये केवल
खाली आकाश पर
ठंडे सैलाब में बही वसंत-पीढ़ियाँ
पाँव कही टिके नही, इतने हलके हुए

लूट लिए
वे मिले घबराकर ऊब ने
कड़वाहट ने मीठी घड़ियाँ सब माँग लीं
मिले  मूल  हस्ताक्षर  भी आदिम गंध के
बुझी हुई शामें कुछ
नज़रों ने टाँग लीं
हाथों में दूध का कटोरा, चंदन-छड़ी
वे महके  सोन प्रहर  बीते कल के हुए

कहाँ गए
बड़ी बुआ वाले वे आरते
कहाँ गए हल्दी-काढ़े सतिये द्वार के
कहाँ  गए  थापे  वे  जीजी  के हाथों के
कहाँ गए चिकने पत्ते
बंदनवार के
टूटे वे सेतु जो रचे कभी अतीत ने
मंगल त्योहार-वार पल दो पल के हुए
तन हुए शहर के पर मन जंगल के हुए

२१ मई २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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