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अनुभूति में सोम ठाकुर की रचनाएँ—

गीतों में-
खिड़की पर आँख लगी
मन जंगल के हुए
प्रेमा नदी
सूर्यमुखी फूल
स्वर की तरंगें
वेला संवत्सरा
हवाएँ संदली हैं

संकलन में-
मेरा भारत- तिरंगा
         राष्ट्र देवता
         वंदन मेरे देश
मातृभाखा के प्रति- राजभाषा वंदन

 

खिड़की पर आँख लगी

खिडकी पर आँख लगी,
देहरी पर कान।
धूप-भरे सूने दालान,
हल्दी के रूप भरे सूने दालान।

परदों के साथ-साथ उडता है-
चिड़ियों का खण्डित-सा छाया क्रम
झरे हुए पत्तों की खड़-खड़ में
उगता है कोई मनचाहा भ्रम
मंदिर के कलशों पर-
ठहर गई सूरज की काँपती थकान
धूप-भरे सूने दालान।

रोशनी चढ़ी सीढ़ी-सीढ़ी
डूबा मन
जीने की मोड़ों को
घेरता अकेलापन

ओ मेरे नंदन!
आँगन तक बढ़ आया
एक बियाबान।
धूप भरे सूने दालान।

२१ मई २०१२

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