अनुभूति में शीला पांडे
की रचनाएँ-
गीतों में-
नीम-निबौरी
पालों वाली नाव बनाएँ
माँ कभी मरने न पाती
रोप रहे पुलुईं से पौधा
स्वाधीन-इन्द्रियाँ |
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स्वाधीन-इन्द्रियाँ
जीवन-तार में करतब-धागे
साज रहीं बेहतर
आज औरतें बीन रही हैं
इतर नया ‘स्वेटर’
सुदृढ़ कन्धे, तने-तने, तन
बाजू सधे-सधे हैं
अंगुलियों की पोर-पोर ज्यों
जादू आन नधे हैं
कद माथे तक, उठी भुजाएँ
नाप रहीं ‘मैटर'
‘फंदे’ घटा-बढ़ा, बो देतीं
पॉकेट में कुछ बीज
सरकातीं कंधों से फंदे-
हर अनुपयोगी चीज
काँपें, पाँव-बेड़ियाँ, देतीं
इस्तीफ़ा ‘लेटर’
‘फंदे’ तजतीं तभी गिरे ‘घर’
तोहमत थी अज्ञानी
घटा दिये गरदन के फंदे
ज़्यादा-ज़्यादा मानी
गर्दन मुक्त हुई साँसे
आतीं-जातीं ‘बेटर’
कान, आँख, सिर घूँघट-टोपा-
कोल्हू-बैल सरीखीं
खींच गिरा, स्वाधीन इन्द्रियाँ
पोषित करना सीखीं
मुक्त शीश के मुकुट बनाएँ
नाप-जोख, ‘फाइटर’
भाँति-भाँति सिर, भाँति-कंगूरे
गढ़े सतत दिन-रात
फिट जूतों के पाँव बदलकर
नापें, जग के घात
टोपी, जूते, दस्ताने संग
जाँचें ‘थियेटर’
१ अगस्त २०१६
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