अनुभूति में शीला पांडे
की रचनाएँ-
गीतों में-
नीम-निबौरी
पालों वाली नाव बनाएँ
माँ कभी मरने न पाती
रोप रहे पुलुईं से पौधा
स्वाधीन-इन्द्रियाँ |
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नीम-निबौरी
बीन रहे हैं नीम-निबौरी
कड़वे-कड़वे, प्रातः शाम
पेट काट तन-मन सुख खोकर
खोया बचपन, धेले में दिन
आँख-फोड़ दिन-रात पढ़ाई
छूटा हुनर, झमेले में छिन
लेकर, मंडी हाँक लगाएँ
चाहत बची, न मिलता दाम
बैठे-ठाले, फिरते रहते
जहाँ-तहाँ हैं बियाबान में
अक्षर रखते बैर-भाव हैं
देखे जाते हर सिवान में
इनके भी कब, रोजगार हैं
सिस्टम में है पूरा झाम
माटी में तन माटी बोते
पोषें जठर-अनल की ज्वाला
है लेकिन भूखे बैतालों का
जमघट काँधे, रखवाला
पलट करों से, बोटी नोंचें
रज साधक मरता निष्काम
सारे हुनर, योग्यता बन्धक
कैसे हो घर में उजियारा
दिवस-दिवस अवगति वितान का
कहाँ पले फिर नभ का तारा?
दीप सजीं खोखल मीनारें
देश भागता है अविराम
१ अगस्त २०१६
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