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अनुभूति में शीला पांडे की रचनाएँ-

गीतों में-
नीम-निबौरी
पालों वाली नाव बनाएँ
माँ कभी मरने न पाती
रोप रहे पुलुईं से पौधा
स्वाधीन-इन्द्रियाँ
 

माँ कभी मरने न पाती

चढ़ी चूल्हे पर निरन्तर
दाल जैसी खदबदाती
भाप भी उड़ने न पाती

बन्धनों में पंख साधे
ग्लैशियर है शीश पर
चोंच भर दानें मिलें तो
वक्ष दे दे चीर कर

‘बोझ भर’ दायित्व लादे
रोज़ साँसे भदभदातीं
आह भी रिसने न पाती

ठौर या प्रतिबद्धता
निःशेष हर सम्बन्ध में
कागजों की नाव खेना
रह गया अनुबन्ध में

आँसओं में डूब जाती
पीर जो उठती धधाती
चोट भी भरने न पाती

संस्कृति कंधे-धरे
दी आयु सेवा भाव में
भीत पर धक्का लगाती
जिन्दगी रख दाँव में

विष पुरुष के त्रास भीतर
गाय ये, ममता दुधाती
माँ कभी मरने न पाती 

१ अगस्त २०१६

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