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अनुभूति में सावित्री परमार की रचनाएँ-

गीतों में-
कहाँ गाँव कब शहर
खुलकर हँसे
बिखर गए दिन
लौट आएँ दिन
सूरज है बीमार

  खुलकर हँसे

खुल कर हँसे कि मन का पूरा
उजलाया आकाश

खामोशी की खुली अर्गला
टूटे कई विराम
जुड़े कई सम्बोधन लगता
फिर भी सभी अनाम,

सहज सरल बातों में घिर कर
अँकुराया विश्वास

एक नया संसार लिये
बौराया मीठा सपना
कोना कोना लगा कि जैसे
युग युग से हो अपना

पंख खोल उड चली कल्पना
इठलाया उल्लास

१९ मई २०१४

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