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अनुभूति में सावित्री परमार की रचनाएँ-

गीतों में-
कहाँ गाँव कब शहर
खुलकर हँसे
बिखर गए दिन
लौट आएँ दिन
सूरज है बीमार

  कहाँ गाँव कब शहर

कहाँ गाँव कब शहर मिला
कुछ भी तो याद नहीं,

सूखे धान पुआलों से दिन
यों ही बिखर गये
धुआँ -धुआँ साँस-साँझ के
द्वारे सिहर गये

करवट- करवट दर्द न झेले
ऐसी कोई रात नहीं

तपती रेत बाँध पाँवों में
साथ अभावों के दौड़े
चिथड़े- चिथड़े स्वप्न अजन्मे
आहत मन अक्सर ओढ़े

अंग- अंग के संदर्भ खंगोले
अपनी कोई बात नहीं ।

१९ मई २०१४

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