अनुभूति में
सत्यनारायण की रचनाएँ—
नए गीतों में-
अजब सभा है
मैंने हलो कहा
रौशनी के लिये
है धुआँ
तो
गीतों में-
बच्चे जैसे कथा कहानी
बच्चे अक्सर चुप रहते हैं
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रोशनी के लिये
जिये
हाँ, कितने अँधेरे जिये
हमने रोशनी के लिये
दिन गए
वासर गए,
बीते महीने
बरस गुजरे
ये अँधेरे
और होते रहे गहरे
और गहरे
उजालों का भरम
देते रहे
सारे टिमटिमाते दिये
ये सभाएँ
मंत्रणाएँ, घोषणाओं
की दुहाई
देखते
सुनते रहे हम
कब हमारे काम आई
सिर्फ चलते रहे
काँधों पर
उठाए ताजिये
वर्ग तक था
वर्ण तक सिमटी रही
सारी कहानी
इस तरह से
बाँटती ही रही
हमको राजधानी
मरे सौ-सौ बार
हम तो
जिन्दगी के लिये
५ सितंबर २०११ |