अनुभूति में
सत्यनारायण की रचनाएँ—
नए गीतों में-
अजब सभा है
मैंने हलो कहा
रौशनी के लिये
है धुआँ
तो
गीतों में-
बच्चे जैसे कथा कहानी
बच्चे अक्सर चुप रहते हैं
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अजब सभा है
अजस सभा है
अजब सभासद
राजा वही वही है रानी
घूम-घामकर वही कहानी
वही मुसाहिबी
और खुशामद
कठपुतलों का खुला खेल है
सबकी नाकों में नकेल है
ठुमक-ठुमक
कर रहे कवायद
आग कहाँ बस धुआँ-धुआँ है
हाँ-हाँ है या हुआँ-हुआँ है
सभी मस्त हैं
सब हैं गदगद
ये सब चाभी भरे खिलौने
कितने ठिंगने कितने बौने
कोई नहीं
यहाँ आदमक़द
सब निर्णय परदे के पीछे
सिर हिलते हैं ऊपर-नीचे
देह देखिये,
रीढ़ नदारद
रानी माँ हैं राजकुँवर हैं
हरा छत्र है, लाल चँवर हैं
अब जनतंत्र
यही है शायद
५ सितंबर २०११ |