अनुभूति में
सत्यनारायण की रचनाएँ—
नए गीतों में-
अजब सभा है
मैंने हलो कहा
रौशनी के लिये
है धुआँ
तो
गीतों में-
बच्चे जैसे कथा कहानी
बच्चे अक्सर चुप रहते हैं
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है धुआँ तो
है धुआँ तो
आग तो होगी कहीं
पेट की हो
या कि जंगल की
आहटें हैं
ये अमंगल की
इन्हें यों ही
टालना अच्छा नहीं
देखना जब
सिर उठाएँगी
चिनगियाँ ये
कहर ढाएँगी
अब तलक जो
राख में दबकर रहीं
चलो, अच्छा हो
कि यों कर लें
आग चूल्हे में
वहाँ धर दें
मुन्तजिर है
भूख रोटी की वहीं
५ सितंबर २०११ |