अनुभूति में
डॉ. सुरेश की रचनाएँ
गीतों में-
कंधे कुली बोझ शहजादे
मन तो भीगे कपड़े सा
मैं घाट सा चुपचाप
समय से कटकर कहाँ जाएँ
सोने के दिन चाँदी के दिन
हम तो ठहरे यार बनजारे |
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सोने के दिन,
चाँदी के दिन
सोने के दिन, चाँदी के
दिन
आए-गए,
आँधी के दिन
हर रात थी जैसे नई
होठों पर थे सरगम कई
गंगा थे हम, जमुना थे हम
बनते रहे संगम कई
पूजा के दिन, तीरथ के दिन
थे होम की जैसे अगिन
मेंहदी रची शरमीली शाम
हल्दी चढ़े, हाथों को थाम
थी बाँटती फूलों को गंध
गाती थी गीत ले-लेकर नाम
रेशम के दिन, कुमकुम के दिन
लगते थे ज्यों, मौसम के ऋण
इन्दरधनुष कांधे धरे
चलते थे हम, सहमे डरे
टूटे कहीं सपने नहीं
डूबे न ये जंगल हरे
बादर के दिन, बरखा के दिन
पल में सहज, पल में कठिन
टूटे मगर तितली के पंख
छूटे कहीं किरणों के छनद
संकल कोई खनका गया
खुलते गए दरवाजे बन्द
बाहर कहीं, कुछ भी नहीं
भीतर छिपी चुभती थी पिन
१६ जुलाई २०१२ |