अनुभूति में
डॉ. सुरेश की रचनाएँ
गीतों में-
कंधे कुली बोझ शहजादे
मन तो भीगे कपड़े सा
मैं घाट सा चुपचाप
समय से कटकर कहाँ जाएँ
सोने के दिन चाँदी के दिन
हम तो ठहरे यार बनजारे |
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समय से कटकर
कहाँ जाएँ
सैकड़ों सुइयाँ
चुभाता है समय
समय से कटकर कहाँ जाएँ
बिखर कर बँटकर कहाँ जाएँ
बाँधकर पासंग
बैठे हैं निकष
आँकते अपनी धुरी पे तोल
तिलमिला कर
छटपटाकर मौन हो
सूलियों पर चढ़े सच के बोल
रास्ते आसान
भी होते मगर
लीक से हट कर कहाँ जाएँ
हम जिए हैं
जिन्दगी अपनी
या जिए हैं और की शर्तें
है किसे फुरसत
सलीके से संवारे
महकती मन की दबी परतें
ऊपरी सतहें
चमकती हैं बहुत
चमक से बचकर कहाँ जाएँ
१६ जुलाई २०१२ |