अनुभूति में
डॉ. सुरेश की रचनाएँ
गीतों में-
कंधे कुली बोझ शहजादे
मन तो भीगे कपड़े सा
मैं घाट सा चुपचाप
समय से कटकर कहाँ जाएँ
सोने के दिन चाँदी के दिन
हम तो ठहरे यार बनजारे |
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हम तो ठहरे यार
बनजारे
इस नगर हैं, उस नगर हैं
पाँव में बाँधे सफर हैं
हैं थके हारे, नींद के मारे
हम तो ठहरे यार बनजारे
ये हवा लाई उड़ाकर, कुछ पलों को पास तेरे
कौन समझे, कौन जाने ? नियति के अनजान फेरे
दो घड़ी सुन लें, सुना लें
गीत सा ही मन बना लें
पीर को भी गुनगुना लें, प्यार से प्यारे
हम तो ठहरे यार बनजारे
चाँदनी से दर्द पाया, धूप ने जी भर तपाया
एक हल्की सी हँसी ने, उम्र भर मुझको रुलाया
दूर हैं अपने ही साए
फिर सगे क्या, क्या पराए
कौन अपनाए हमें हम टूटते तारे
हम तो ठहरे यार बनजारे
ओढ़ ली छत आस्मां की, बन गई धरती बिछौना
जिन्दगी के रंग दो ही, रो के हँसना हँस के रोना
हम अगर सुख को सँवारें
दर्द भी थोड़ा दुलारें
और की खातिर हमेशा जीत कर हारे
हम तो ठहरे यार बनजारे
१६ जुलाई २०१२ |