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कुतर
रहीं गिलहरियाँ
कुतर रहीं गिलहरियाँ वर्तमान
इस उजाड़ मौसम में
एक कलम रोप कर दिखाओ
ओठों पर सत्य लिये चीख कर दिखाओ
मोन की शिलाओं से
सिंधु नहीं पटते हैं
ऐसा भी क्या जीना
साँस, साँस अटके हैं
जीवन प्रत्याशा का शंख तो बजाओ
आखिर तो कोई है
पल छिन जो काट रहा
चिट्ठियाँ गलत समय की
गलत पते पर बाँट रहा
सम्भव कुछ और नहीं तो हाथ ही उठाओ
ओठों पर सत्य लिये चीख कर दिखाओ
२४ नवंबर २०१४
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