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बैठे
धुएँ की छाँव में!
प्यार का दीपक जलाने आ गये
हम अँधेरे गाँव में
तैरती झंझाओं में
एक अरसा हो गया
कोहराम में ठहरे हुए
घाव जो लेकर चले
और भी गहरे हुए,
दूर छूटी धूप, बैठे धुएँ की छाँव में।
अब नहीं हँसते
तालाबों में कमल
गठरियों भर प्यास
नहीं अंजुरी में जल
सर्पिणी लहरें, बैठे छेद वाली नाव में।
२४ नवंबर २०१४
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