अनुभूति में
रमेश रंजक की रचनाएँ—
गीतों में-
अब की यह बरस
ईमान की चिनगी
गगन भर प्रण
गीत-विहग उतरा
चुलबुली किरन
तीलियों का पुल
दिन अकेले के
संकलन में-
कचनार के दिन-
वेणी
कचनार की
वर्षा मंगल-
बादल घिर आए
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अब की यह बरस
अब की यह बरस
बड़ा तरस-तरस बीता
दीवारें नहीं पुतीं, रंग नहीं आए
एक-एक माह बाँध, खींच-खींच लाए
अब की यह बरस
जाने क्या हो गया सवेरों को
रोगी की तरह उठे खाट से
रूखे-सूखे दिन पर दिन गए
किसी नदी के सूने घाट-से
हमजोली शाखों के हाथ-पाँव
पानी में तैर नहीं पाए
शामें सब सरकारी हो गईं
अपनापन पेट में दबोच कर
छाती पर से शहर गुज़र गया
जाने कितना निरीह सोच कर
बिस्तर तक माथे की मेज़ पर
काग़ज़ दो-चार फड़फड़ाए
वेतन की पूर्णिमा नहीं लगी
दशमी के चाँद से अधिक हमें
शीशों को तोड़ गई कालिमा
समझे फिर कौन आस्तिक हमें
खिड़की से एक धार ओज कर
हम आधी देह भर नहाए
३० जनवरी २०१२
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