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अनुभूति में रमेश गौतम की रचनाएँ— 

नये गीतों में-
एक नदी
गीत जल संवेदना के
पाँखुरी नोची गई
मत उदास हो
मैं अकेला ही चला हूँ
शुभ महूरत

गीतों में-
मान जा मन
जादू टोने

शब्द जो हमने बुने

 

मत उदास हो

मत उदास हो
मेरे अन्तर्मन
माथे पर गीतों का चन्दन है।

कोलाहल युग में एकांत मना
गीतों को देते क्यों व्यर्थ दोष
भावुक महर्षियों के वंशज हैं
अनायास ही खुलते अधर कोष
आ जाते जिह्वा पर
गीतमंत्र
जब-जब भी आहत होता मन है।

यह कैसा काव्यानुष्ठान जहाँ
फोड़ दिए छन्दों के मंगल घट
शब्दों की सिर चढ़ी नुमाइश में
बिकते हैं अट्टहास के जमघट
छोड़ो चिन्ताएँ
अक्षयधनकी
जन-जन के मन में अभिनन्दन है।

मृग-मरीचिकाओं के आमंत्रण
चातक स्वर बूँद-बूँद रोता है
प्यास और पानी के रिश्तों का
कागज पर मौन मुखर होता है
रूठा श्यामल घन
तो क्या हुआ
नयनों में ठहरा सम्वेदन है।

सम्भव कब अन्तर्लय के बिना
गागर में सागर की भावना
सिरहाने बैठै नवगीतों की
पीर कभी देहरी मत लाँघना
लय,गति, मात्राओं
की छाया में
रूप-रंग कविता का कुन्दन है।

६ अप्रैल २०१५

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