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अनुभूति में पं. रामेन्द्र मोहन त्रिपाठी की रचनाएँ-

गीतों में-
जूते आ गए चाँदी के
देश की धरती
तोड़ गई परछाईं

 

तोड़ गई परछाईं     

रुचते हैं द्वारे पर ठहरे कुछ भ्रम
कल भी हम पागल थे
आज नहीं कम

बातों में
मरहम संत्रास लिये खूब
निचली दूकानों से फुटकर ले ऊब
अपनी ही छाया से गले मिले डर कर
कैसी परवशता है
कौन सा धरम

जाले से
पुरे रहे शीशों के पार
मंदिर के नीचे भी खण्डित आधार
निर्निमेष टूटन ले और कहाँ जन्मे
बैसाखी लेकर ये
बहरा आदम

दागी सब
दीवारें नोकदार कीलें
सौगंधें वेदमंत्र डूब गयी झीलें
प्यासे सबके सब भटके मृगतृष्णा में
फिर सूखी सतहों को
कौन करे नम

अधरों पर
रक्त दिये शीश पर सलीब
कहाँ लिये चले गए देश को अदीब
निश्चल विश्वासों में जुड़ कर भी
तोड़ गयी परछाईं
दरपन में दम

११ अप्रैल २००१

 

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