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अनुभूति में पं. रामेन्द्र मोहन त्रिपाठी की रचनाएँ-

गीतों में-
जूते आ गए चाँदी के
देश की धरती
तोड़ गई परछाईं

 

देश की धरती 

देश की धरती
पानी अग्नि पवन गगन की घाम
जियें तो इसके लिये जियें हम मरें तो इसके नाम

इसमें आँख
खुली थी अपनी इसमें ली अँगड़ाई
इस पर महकी साँस हमारी इस पर झपकी आई
इस में बचपन खेला
मछली-मछली कितना पानी
इसके गीत सुने आ गई मस्ती भरी जवानी
इसके कण कण को गीता में
घोल गए घनश्याम

सोने का सूरज
किरणों से पहला अर्घ्य उतारे
सागर चरण पखारे फिर से मोती के फव्वारे
चंदन के तन फूलों
के मन बालें बाग बगीचे
ऊँचे ऊँचे पर्वत इसके सागर नीचे नीचे
सुबह बनारस रात मालवा
और अवध की शाम

यहाँ गाँव की
गोरी बारहमासी गाए मन में
अँधियारा हरने को पूरनमासी चढ़े गगन में
जाड़े में घर जले अँगीठी
नानी कहे कहानी
सास ननद के पाँव दबाए देवरानी जेठानी
दूध बताशा खाते मामा
देते नहीं छगाम

यहाँ मलूका
रामभरोसे कबिरा गाए साखी
गरबा को गणगौर नचाए भँगड़ा को बैसाखी
मीरा विष पीकर जीती है
जासे सागर पाखी
राजपूत की सुता बाँधती मुसलमान को राखी
इर नारी में ईश्वर जन्मा
किये मनुज के काम

इसकी बानी
प्रेम की बानी बोले यहाँ फकीर
हिंदी के पहले पहले कवि खुसरो बड़े अमीर
मुंशी इंशा अल्ला खाँ ने
पहली लिखी कहानी
पद्मावत की कथा जायसी की अनमोल निशानी
हिंदी की बिंदी तुलसी के
तिलक लगाते राम

११ अप्रैल २००१

 

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