अनुभूति में पं. रामेन्द्र मोहन त्रिपाठी की रचनाएँ-
गीतों में-
जूते आ गए चाँदी के
तोड़ गई परछाईं
देश की धरती |
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जूते आ गए चाँदी
के
आज़ादी के बाद चली जो क्या कहने उस आँधी के
जिनके नंगे पांव थे उन पर जूते आ गए चाँदी के !!
सौ मैं सत्तर को रोटी के लाले हैं,
वे कहते हैं हम ये देश सँभाले हैं !
अंधे धंधों के हज़ार घोटाले हैं ,
भारत माता के अंतर मैं छाले हैं !
शर्मसार हैं, तार तार हैं, सर्वोदय की जाति के ! !
जात पात परिवारवाद का हम तूफ़ान चलते हैं,
जेब कतराने वाले दर्जी की दुकान चलते हैं !
दृष्टिहीनता के शिकार भी तीर कमान चलते हैं,
घुटनों घुटनों चलने वाले हिस्दुस्थान चलते हैं !
अब तक शर्म न आई कहते ये बेटे हैं गाँधी के !!
रिग- रिग, रई रई, रम्पा- रम्पा गाता हुआ जवान मिला,
भेड़ की खाल में लिपटा हमको प्रगतिशील इंसान मिला !
आरक्षण की आग मिली और उलझा हुआ विधान मिला,
आज़ादी की आड़ में टुकडे- टुकडे हिन्दुस्थान मिला !
पाप में भागिदार मिले हैं अफसर आदि आदि के !!
कांग्रेस, भाजपा, जनता दल, रामो - वामो सपा,
सबके सब हैं गुड- मुड, गुड- मुड छईम छाई छप्पा !
हर मुलजिम के घाट अलग हैं अलग अलग हैं ठप्पा !
जुटे जुआरी कर देने को पूरा देश हड़प्पा !
हर दो साल के बाद भेजते कार्ड ये अपनी शादी के
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