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अनुभूति में रमाकांत की रचनाएँ-

गीतों में-
गाने दो
तेरी बातें कब होंगी
ये दूकाने हैं
शहर
सुबह सुबह अखबार

  ये दूकानें हैं

ये दूकानें हैं
दूकानें सजी-सजायीं हैं
दूकानें
मालिक के घर से
बिकने आयीं हैं

खड़ी हुई दूकानें
लेटी, बैठी, दूकानें
टेंट देखकर
बड़ी अदा से
ऐठीं दूकानें
दूकानों में
छीना-झपटी
बड़ी लड़ाई है

दूकानों तक
चलकर आना
एक जिन्दगी जीना
फूल और
काँटों का एक संग
पड़े रसायन पीना
जो पीना चाहें
पीने में
नहीं बुराई है

जो सामान
सजा रखा है
उसको खोलो, बाँधो
तुरत-फुरत का
जादू-मन्तर
सधे न साधे माधो
फिर भी दूकानों की
माधो संग
सगाई है

१२ दिसंबर २०११

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