अनुभूति में रमाकांत
की रचनाएँ-
गीतों में-
गाने दो
तेरी बातें कब होंगी
ये दूकाने हैं
शहर
सुबह सुबह अखबार |
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गाने दो
जीवन में
या सपने में
जो भी आता है
आने दो
जीवन छोटा है
सपने हैं बहुत बड़े
हम अपने ही
पैरों पर हैं नहीं खड़े
कोई टेक लगाये
पीछे चलता है
उस पर थोड़ी नज़र रखो
या जाने दो
इश्तहार में
जो भी है सब झूठा है
या कि कला का
मालिक ही कुछ रूठा है
करो प्रार्थना
देखा सुना सही ही हो
गलत गा रहा
यदि कोई तो गाने दो
१२ दिसंबर
२०११ |