अनुभूति में रमाकांत
की रचनाएँ-
गीतों में-
गाने दो
तेरी बातें कब होंगी
ये दूकाने हैं
शहर
सुबह सुबह अखबार |
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तेरी बातें कब होंगी
हर दम मेरी बातें
तेरी बातें कब होंगी
बातों का सिलसिला
इधर से ही
क्यों चलता है
तेरे सिर तक
आते-आते
पानी ढलता है
यहाँ-वहाँ सब तरफ
एक बरसातें
कब होंगी
चटक-मटक कपड़ों में
छिप जाती हैं
तस्वीरें
खुले हुए चेहरे से
दिख जाती हैं
सब पीरें
पीरों को नींद
सुलाने वाली रातें
कब होंगी
१२ दिसंबर
२०११ |