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अनुभूति में डॉ राधेश्याम शुक्ल की रचनाएँ-

नए गीतों में-
अम्मा धरें रोज सगुनौटी

आँगन की तुलसी
गँवई साँझ
जाने किस घाट लगे
पिता गाँव में
पुरवाई

 

गीतों में-
कुछ कहीं हो जाए
मेरा शहर

संकलन में-
श्वेतवर्ण कोमल बादल

दोहों में-
रेत नहाई नदी

 

आँगन की तुलसी

ऐसी धुंध पड़ी
आँगन की तुलसी सूख गई

अम्मा के
कातिक नहान की साखी भरती थी
देर रात तक सँझबाती से बातें करती थी
वत्सल होकर मानस की चौपाई गाती थी
अम्मा के गीतों भजनों की
टेक उठाती थी

सरस मंजरी
विरस हवा के झाँसे चूक गई

अम्मा चिंतित
सिझी रसोई भोग लगे कैसे
जोग छेम के नेम धरम  अब टूटेंगे जैसे
लोक वेद का संग छूटेगा क्या रह जाएगा
बाजारू सपना घर आँगन
भरम उगाएगा

गँठजोड़ी
मनौतियाँ बिखरेंगी हो टूक कई

१८ अक्तूबर २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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