ओ श्वेतवर्ण कोमल बादल,
मन को भावन तेरा स्वरूप,
तेरी घुमड़न की मधुर छटा,
कर देती हिय में अचल वास।
ओ दीप्तिमान गतिमान रूप,
है क्षणभंगुर तेरा स्वरूप,
रंग-बिरंग तेरा शरीर,
करता कवि मन को है अधीर।
संपूर्ण गगन तेरा गुलाम,
करता उस पर तू मुक्त चाल,
खुद सूर्य, चाँद, तारे अनंत,
को ढक देता तू है महान।
ओ बादल तेरा श्वेत अपार,
सागर-सा है तू अति विशाल,
हो उठा कवि तुझ पे कायल,
है स्वर्ग-सा तेरा विलास।
सूर्य जब नभ में ज्वलंत हो,
चमचमाता गर्व से भर,
खिन्न कर देता उसे तू,
शैल-सा चादर बिछाकर।
- अजय कुमार "गुंजन"
25 अगस्त 2005
उमस भरा सावन
(दो हाइकु)
चाहा था मैने
रस भीगा मौसम
न कि उमस
झूलें क्या झूला
सावन का मौसम
आग बबूला
- केशव शरण
25 अगस्त 2005
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